अद्धा खींचने के बाद जब
बैठ गईं बिरजू की आंखें
गुटखा खोलकर उसने तुलसी मिलाई
और बजाया बेसुधी की छन छन तक
उड़ेल कर उसे मुंह में
उतरा नींद की नदी में वह
सुबह सड़क तक भीगी थी
धूप तब तलक जागी न थी और
ओस की चादर चढ़ी थी उसके जिस्म पर
राहगीरों ने चुपचाप आनंद का अनुष्ठान देखा
कुत्ते किंकर्तव्यविमूढ़ सूंघते रहे